ऋग्वेद
ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीनतम धर्मग्रन्थ है। / From Wikipedia, the free encyclopedia
सनातन धर्म का सबसे आरम्भिक स्रोत है। इसमें १० मण्डल,[2] १०२८ सूक्त और वर्तमान में १०,४६२ मन्त्र हैं, मन्त्र संख्या के विषय में विद्वानों में कुछ मतभेद है। मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है। इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाओं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह सनातन धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है। ऋग्वेद की रचनाओं को पढ़ने वाले ऋषि को होत्र कहा जाता है।
ऋग्वेद | |
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जानकारी | |
धर्म | हिन्दू धर्म |
भाषा | वैदिक संस्कृत |
अवधि | 1500 BC-1000 BC |
अध्याय | १० (10) मण्डल |
श्लोक/आयत | १०,५८० (10 580)मंत्र[1] |
ऋग्वेद सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पुस्तक है।[3] इसकी प्रारम्भिक परतें किसी भी इंडो-यूरोपीय भाषा में सबसे पुराने मौजूदा ग्रन्थों में से एक हैं।[4][note 1] ऋग्वेद की ध्वनियों और ग्रन्थों को दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से मौखिक रूप से प्रसारित किया गया है।[6][7][8] दार्शनिक और भाषायी साक्ष्य इंगित करते हैं कि ऋग्वेद संहिता के थोक की रचना भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुई थी।
ऋक् संहिता में १० मण्डल तथा बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मन्त्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मन्त्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ॰ १०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ॰ १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ॰ १०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ॰ १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है।
इस ग्रन्थ को इतिहास की दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण रचना माना गया है। ईरानी अवेस्ता की गाथाओं का ऋग्वेद के श्लोकों के जैसे स्वरों में होना, जिसमें कुछ विविध भारतीय देवताओं जैसे अग्नि, वायु, जल, सोम आदि का वर्णन है।