गायत्री मन्त्र
विश्व का सबसे प्राचीन और शक्तिशाली मन्त्र / From Wikipedia, the free encyclopedia
गायत्री महामंत्र (सुनें ) वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है।
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गायत्री | |
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वेद | |
गायत्री मन्त्र | |
देवनागरी | गायत्री |
संबंध | हिन्दू देवी |
निवासस्थान | सत्य लोक |
मंत्र |
ॐ भूर्भुवः स्वः । तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। |
अस्त्र | वेद और कमंडल |
जीवनसाथी | ब्रह्मा |
सवारी | हंस |
'गायत्री' एक छन्द भी है जो 24 मात्राओं 8+8+8 के योग से बना है । गायत्री ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है:
- तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्। (ऋग्वेद ३,६२,१०)
- गायत्री ध्यानम्
मुक्ता-विद्रुम-हेम-नील धवलच्छायैर्मुखस्त्रीक्षणै-
र्युक्तामिन्दु-निबद्ध-रत्नमुकुटां तत्त्वार्थवर्णात्मिकाम्।
गायत्रीं वरदा-ऽभयः-ड्कुश-कशाः शुभ्रं कपालं गुण।
शंख, चक्रमथारविन्दुयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे॥
नौग्रहों के गायत्री मंत्र इस प्रकार हैं-
11:08
सूर्य गायत्री मन्त्र-
ॐ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय धीमहि, तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
चन्द्र गायत्री मन्त्र-
ॐ अमृताङ्गाय विद्महे, कलारूपाय धीमहि, तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥
भौम गायत्री मन्त्र-
ॐ अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
बुध गायत्री मन्त्र-
ॐ सौम्यरूपाय विद्महे, वाणेशाय धीमहि, तन्न: सौम्यः प्रचोदयात् ॥
गुरु गायत्री मन्त्र-
ॐ आंगिरसाय विद्महे, दण्डायुधाय धीमहि, तन्नो जीवः प्रचोदयात् ॥
शुक्र गायत्री मन्त्र-
ॐ भृगुपुत्राय विद्महे, विन्देशाय धीमहि, तन्न: शुक्रः प्रचोदयात् ॥
शनि गायत्री मन्त्र-
ॐ सूर्यात्मजाय विद्महे, मृत्युरूपाय धीमहि, तन्न: सौरिः प्रचोदयात् ॥
राहु गायत्री मन्त्र-
ॐ शिरोरूपाय विद्महे, अमृतेशाय धीमहि, तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
केतु गायत्री मन्त्र-
ॐ गदाहस्ताय विद्महे, अमृतेशाय धीमहि, तन्नो केतुः प्रचोदयात् ॥